नज़्म - ग़ज़ल कहने वाले हैं लब सिल के बैठे जो आये थे सुनने; समां बांधते हैं
सुना है सनम की कमर ही नहीं है
न जाने वो लहंगा कहां बांधते हैं
ग़ज़ल कहने वाले हैं लब सिल के बैठे
जो आये थे सुनने; समां बांधते हैं
चलो उन मुसाफ़िरों को साथ ले लो
जो गठरी में आह-ओ-फ़ुगां बांधते हैं
तुम नाहक मेरे स्वप्न रोके खड़े हो
कहीं रस्सियों से धुआं बांधते हैं ?
सुना है सनम की कमर ही नहीं है
न जाने वो लहंगाबांधहैंजज०
(फ़ुगां = दुहाई)
(आब-ए-रवां = बहता पानी)
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