सुनो! मेरी उस कश्ती सी कहानी थी जिसको इस किनारे से उस पार जानी थी - सावन
सुनो! मेरी उस कश्ती सी कहानी थी
जिसको इस किनारे से उस पार जानी थी
कश्ती के माँझी को ये इल्म न था की
कश्ती के हालात की क्या कहानी थी
उसे तो बस अपने बोझ की थी फिक्र
कश्ती को इतनी बोझ नहीं सह पानी थी
पर कश्ती थी हमेशा से ख़ामोश क्योकी
भला बेजानों को हक कब से मिला बोलने को
खैर कश्ती ने छोड किनारा आगे वो डगमगायी थी
पतवारों को क्या इल्म की कश्ती के जिम्मेदारी की
जब कश्ती सह ना पायी बोझ तब
उसको बीच मंझधार मे डूब जानी थी
सुनो! मेरी उस कश्ती सी कहानी थी.....
'सावन'
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