समाज और हम : सावन

ज़िंदगी कितनी भी तुम जी लो वो चलती है क़िस्मत के डोर से, जब क़िस्मत जैसा चाहती है वैसे घुमा देती है, पर प्रेम में ऐसा नहीं होता है, क़िस्मत बस मिलाने तक ही साथ देती है, उसके बाद का काम उस जोड़े का होता है जो कितना साथ एक दूसरे को देता है, इस बात पे उस रिश्ते की मियाद निर्भर होता है, राजा अक्सर राजा इसलिए होते है क्योंकि उनके हिस्से उनकी वफादार रानी होती है, और उनके अपने वफादार होते है।
आधुनिकता के इस दौर में किसी भी बात से इंकार नहीं किया जा सकता है, समलैंगिक रिश्ते, इंटर कास्ट शादी, इंटर रिलीजन शादी, कुछ भी हो सकता है, ये कोई बड़ी बात नहीं है, पर लोग समझ नही रहे है, आज कल के इस भागदौड़ की जिंदगी में रिश्ता महज एक झूठ है, दिखावा है, चल तो उनका खुद स्वयं के साथ नही रहा है पर चला वो रिश्ता रहे है।
घर वाले चाहते है कोई अंजान लड़की आ के घर के रिश्ते को धूमिल कर दे वो चलेगा, वो अपने प्रेमी को ना छोड़ पाए और गलत कदम उठा ले वो चलेगा लेकिन प्रेमी के साथ उसको जीने नही देगा ये समाज, अक्सर मेरा तल्खी के साथ बहस हो जाता है घर वालो के साथ जब वो कहते है की समाज क्या कहेगा मैं उनसे पूछता हूं समाज ने किया क्या है आप के लिए आप ने किया है मैने देखा है समाज ने कुछ नहीं किया। सिवाय हमारा आंकलन करने और नीचा दिखाने के अलावा। 
शादी एक बार होती है करो अपनी पसंद के साथ वरना आगे की जिंदगी के 30 साल 40 साल 50 साल 60 साल  तुम किसी ऐसे अंजाने के साथ गुजरोगे जो तुम्हारा कभी पसंद था ही नही वो अलग बात है की बाद में सब बदल जाता है।

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