कविता : वो पत्ता जो सूखा है, हवा के एक झोंके से टूटा है, वर्षों पुराना ये साथ, इक पल में जैसे छूटा है,


वो पत्ता जो सूखा है,
हवा के एक झोंके से टूटा है,
वर्षों पुराना ये साथ,
इक पल में जैसे छूटा है,
वो आज जमीं पे यूं बेज़ान पड़ा है,
बिछोह के इस गम से देखो जैसे रो पड़ा है,
उदास है, रूदाली बनके गा रहा है,
उस वृक्ष से इस कृत का जवाब उससे मांग रहा है,
गाथा अपनी दिल से सुना रहा है,
सबको व्यथा अपनी बता रहा है,
कहता है-
" गलती तो मेरी कम से कम बता देते मुझे,
गर होती गलती मेरी तो सजा देते मुझे,
यूं अलग होने के पश्चात भी,
गलती अपनी ही मैं खोज रहा हूं,
आखिर क्या था जिसने तुम्हें इस क़दर क्रूर बना दिया?
इस बात को लेके घंटों जहन में टटोल रहा हूं।

क्या था जो उस भरोसे पर भी भारी पड़ गया,
जिसे कायम किया था हमने अपने प्यार से,
सींचा था जिसे अपने दुलार से,
वर्षों के इंतज़ार से।
वो आज यूं भरभरा के गिर पड़ा है,
आत्मा तो जीवित है,
पर बेजान ये मेरा शरीर पड़ा है,
मेरे जन्म से ही एक साथ थे हम,
उन आंधियों में भी,
हाथों में लिए हाथ थे हम।

तो आज यूं मात्र एक झोंके ने,
कैसे हमारे इस साथ को झकझोर दिया,
जो आंधियां न कर सकी,
वो इस झोंके ने बस इक झोंके में कैसे कर दिया?
शायद बात उस झोंके की नहीं, बात कुछ और है,
हम तो महज़ पात्र हैं, निर्देशक तो कोई और है,
लगता है जैसे ये पूर्व ही निर्धारित था,
हम तो बस खिलाड़ी थे, पूरा खेल तो एक पटकथा पर आधारित था।

हम साथ रहेंगे हमेशा, ये वादा था तुम्हारा,
ये ' हमेशा ' वाला साथ शायद यहीं तक था हमारा,
बात अब थोड़ी स्पष्ट हो रही है,
किसका था ये खेल, ये सिनाख्त हो रही है,
घंटों विचारमग्न होने के बाद जवाब आख़िर मिल ही गया,
खिलाड़ी भी खोज लिए, पूरा खेल भी अब मिल ही गया,
" वक्त "
वो वक्त ही है जो सम्पूर्ण खेल है,
समूची सष्टि रुक जाए,
पर वक्त की रुकती नहीं जो रेल है।

भले ही हमने हर कठिन मौसम को साथ मिलकर झेला है,
ये वक्त ही है, जिसने खेल ही इतना भयंकर ये खेला है,
तो तुमपे अब दोषारोपण क्यूं करूं?
बेगुनाह हो तुम,
तो तुम्हें अपना गुनहगार क्यूं कहूं?
अब वक्त है सब कुछ पीछे छोड़ने का,
आत्मा का इस शरीर के बंधन को तोड़ने का,
तो अब,
इस अनंत कालचक्र का हिस्सा मैं भी बनता हूं,
ये तन त्यागता हूं, कोई दूसरा तन तलाशता हूं।

बस दुआ मेरी इतनी है,
कि हर जनम में मैं तेरे पास रहूं,
तुम्हारे लिए तुम्हारा सबसे ख़ास रहूं,
सदैव कायम रखे तुम्हारा विश्वास रहूं,
जो बढ़ाए शोभा तुम्हारी,
वो बनके तुम्हारा मैं साज़ रहूं।
अभी के लिए बस चलता हूं,
' वक्त निकालकर '
फिर कभी मिलता हूं।

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