सफ़र का मुसाफिर भले ही थक जाए, मगर ये माया का सफर कभी खत्म नही होता।
जीवन कभी ऐसा न था। न जाने कितनी ख्वाहिशें लिए मैं सफर पे आगे बढ़ रहा था। अभी कुछ महीने पहले की ही तो बात है, जब अपना सबकुछ बाँध उस शहर पहुँचा तो ऐसा लगा जैसे अब कुछ बनकर ही घर लौटूँगा। लेक़िन मध्यम वर्गीय परिवार के ख़ुशियाँ और सपने टिकते कहाँ है और मैं लौट आया।
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