मैं, लपकझुन्ना, और हमारा प्रेम 5 : सावन
तो आज चौथा या पांचवां दिन है जब मैं बिना खाए हूं, हां पेट दर्द करता है तो पानी साथ में कुछ बाहर का नाश्ता कर लेता हू पर वो भी 3 टाइम पे 1, भूख तो जैसे मर ही गई है, पता न क्या हो रहा है, मुझे नही पता था की प्यार में कुछ ऐसे हालात हो जाते है पर धीरे धीरे सब समझ आ रहा है जब इन सब से वास्ता पड़ रहा है, मन परेशान है वैसे आज मेरी लपकझुन्ना का जन्म दिन है, शनिवार की शाम नीम करौली बाबा के लखनऊ आश्रम गया था, उसकी खुशियां मांगने, और उसे खुद के लिए मांगने।
शिद्दत से हुई मोहब्बत, आसान नहीं होता है अपनी फीलिंग को दबा पाना, रोक पाना, या जिससे प्यार करते है उसको याद आने से रोक लेना, लेकिन बस चल रहा है भागते फिर रहे है घर वालो से ताकि उन्हें हमारी हालत का अंदाजा ना हो जाए,
सब को मना के भी बस ठहर गया हू उनके परिवार वालो को मनाने के मुकाम पे, लड़का ही न खोजेंगे, मैं हू लड़का, गुनाह महज इतना है की मैं अलग जाति से आता हूं पर मैंने तो कभी जात पात नही मानी छोटे से छोटे कास्ट मेरे मित्र है मैने कभी जातिगत नजर से नहीं देखा तो फिर ये जाति पाती मेरे ही हिस्से क्यों आया। ब्राह्मण हूं यार वो कह दे मैं झोली फैला के मांग लूं दान में उन्हें, अपनी पगड़ी उनके पापा के पैरो में रख के मांग लूं अपनी जिंदगी पर दे तो दे
मैं बस जिसे चाहता हूं वही मेरी जिंदगी का हिस्सा रहेगी वरना ये जिंदगी अकेले गुजारने का दम रखता हूं, महादेव जी को साक्षी मान के ये कसम लेता हूं या तो लपकझुन्ना या फिर अकेले जिंदगी जी लूंगा।
सावन
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