जिंदगी का एक छोटा सफ़र : सावन

 मैने अपनी जिंदगी का कुछ समय बनारस में और उसमे भी एक हद तक मैने हरिश्चंद्र घाट पे बिताया है, मैने देखा है चिता के ठंडा होने तक अपने ही लोगो के आंसुओ को सूखते हुए, चले जाने के बाद भी समाज के लोगो को दोषरोपण करते हुए, मैने देखा है धधकते चिता के साथ आपसी भेदभाव को चरम पे जाते हुए, मैने देखा है दाह संस्कार के खर्चों को ही घाट पे बांटते हुए,

पहले मैंने कभी देखा नहीं फिर किसी सीनियर ने कहा कि बाबू अगर जिंदगी की सच्चाई और समाज का चेहरा देखनी हो तो मणिकर्णिका घाट या हरिश्चंद्र घाट पे जा के कुछ समय बैठो उस भीड़ में जो आए होते है।

पहले मैं उनकी बातों को आजमाने किए गया फिर धीरे धीरे आदत सी लग गई, समाज का भयानक चेहरा देखने का हर रोज़ एक नया सबक सिखाता सुनता और देखता मैने जितनी बार उस घाट को घुमा एक बात तो समझ आ ही गई की ये समाज न, किसी से खुश नहीं है, किसी से नही, चाहे कुछ भी कर लो तुम गलत हो समाज की नजरो में पूरा नहीं फिर भी कुछ गलत हो।

खैर आज इन्ही सामाजिक नजरिए को देखते हुए मेरी जिंदगी दांव पे लगी है, पर कौन समझाए सबको की खुशी देखो न जिसकी वजह आप बन रहे हो, दो बच्चे खुश है, दो जिंदगी एक हो रही है, उनकी खुशी से ज्यादा पहले ही डर का हालात बना दे रहे है, कौन समझाए हमारे चले जाने के बाद करते रहना सबको खुश। जिसके लिए आप लोगो ने जिंदगी जी, बच्चो के लिए गृहस्थी बसाई आज वो सब समाज के आगे फीके पड़ गए आज उनका कोई अस्तित्व नहीं सही है फिर 😭😭😭😭

मेरे हिस्से में रोना लिखा है और शायद कुछ नही देखते है भगवान क्या चाहते है और मेरे भाग्य का फैसला लेने वाले वो दो इंसान क्या चाहते है 😭😭😭


सावन

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