बस यूंही - 2 : सावन

समाज अपने नियम खुद ही बनाता बिगाड़ता है और ज़रूरत पड़ने पे उसे तोड़ मरोड़ के अपने हिसाब से सीधा कर लेता है, समझदार वही यहां पे जो सुने सबकी करे अपनी वाली।

एक सामाजिक कहावत मैने सुनी है बचपन से ही की अनजान दोस्त से बेहतर होता है जान पहचान वाला दुश्मन, कम से कम आप को अपने दुश्मन के बारे में कुछ तो आइडिया होगा ये समाज का ही एक विचार है, पर वही समाज शादी ब्याह के मामले में अनजान संबंधों पे अंधा विश्वास कर के उससे शादी करा देते है, लेकिन एक जान पहचान का विपरित जाति का लड़का या लड़की उन्हें नहीं पसंद आता जिसको स्वयं प्रेमी या प्रेमिका ने चुना होता है। 

हम अपने कर्मों के अधीन होते है, और मनुष्य का कर्म उसके आश्रम व्यवस्था के अधीन होता है, ना की समाज के आधीन।

खैर ज़िंदगी मेरी थोड़े से झपेड़ो के बीच चल रही है बस इस बात का सुकून है की हाथ थाम के चलने वाली हमसफ़र मिली है मना लेंगे, अगर हमसफ़र का साथ रहा तो, और वो जरूर साथ देंगी इस बात का यकीन है मुझको।


सावन 

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