तन्हाई : सावन



तन्हाई में बैठे सोच रहा हू और व्याकुल हूं की कैसे कोई किसी को तन्हा छोड़ सकता है ना कोई आखिरी अलविदा, ना कोई वजह बताया बस निकल गया, मैं खुद से सवाल कर रहा हू की वो ठीक तो होगी न, अगर उसे कुछ हुआ तो मैं खुद को माफ़ नही कर पाऊंगा वो जहां हो अच्छी हो बस ना आए कोई बात नही बस एक बार कह दे की मैं हूं, ठीक हूं तसल्ली मिल जाता इस व्याकुलता मैं।
मैं व्रत हूं, मैं बीमार हूं, मेरे ऊपर जिमेदारिया है, मैं एस्पिरेंट्स भी हूं,  परिवार को कुछ उम्मीदें है मुझसे पर मैं एक गलत इन्सान के पीछे भाग रहा सब कुछ छोड़ उसकी सलामती की दुआं कर रहा।
आधा देश सो रहा होगा, मेरा पूरा गांव सो रहा है मैं बालकनी में कुर्सी लगाए डर, असमंजस में उसके बारे में सोच रहा।
मैं वापस नहीं जाने वाला अगर वो इंसान लौट भी आए तो अब वापस नहीं जाना है क्योंकि उसने मुझे उस मझधार ने छोड़ा है जहां शायद दुश्मन भी ना छोड़ते।
इस फिक्र के साथ एक गुस्सा पनप रहा है इतना की उसकी शक्ल ना देखूं पर बस एक बार ये पता चल जाए की वो ठीक है।

देखते है रात कितनी गहरी होगी मेरे लिए किसी गैर की चिंता में ये तो अब मेरी नींद और ये रात ही फैसला करे वैसे बाहर का  मौसम ठंडा हो रहा है और खुद के भीतर एक तूफान सा मचा है।

खैर सबको महादेव रहेगा
शुभ रात्रि 🙏🏻

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