यादें और रातें.. सावन
कभी तुमने सोचा है कई सारी बातों का बोझ लिए सीने में रातों को बिना नींद के फंस जाओ, कभी तुमने आजमाया है दर्द लिए रातों को जगने में, ये वो दौर होता है जब तुम बस पनाह मांग रहे होते हो कि जल्दी से या तो नींद आ जाए या फिर रात गुजर जाए।
रात का ये दौर होता है जब तुम सारी बातों को कही ना कहीं खुद को जिम्मेदारी मान रहे होते हो, चाहे तुम हो या ना हो, तुम्हारा भूत और भविष्य दोनों तुम्हारा पीछा कर रहे होते है और वर्तमान जैसे बोझ की तरह सीने पे बैठा होता है।
खैर कभी कभी ऐसी रात आ जाती है जब तुम्हारे पास रोने के लिए पूरी रात होती है कभी अपने हालात पे कभी अपने साथ गुजरे बात पे,
एक और कोशिश करने के क्या हर्ज जाता है वैसे भी ढाई घंटे में दिन हो ही जाना है बचना तो बस इन ढाई घंटे से है क्योंकि पूरी रात जो भारी पड़ी है खुद पे
सावन
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